त्यौहार खुशियाँ लाते हैं, साल में एक बार आते हैं और अपनी खट्टी मिठ्ठी यादें छोड़ जाते हैं। हिन्दू धर्म में तो त्यौहारों की अपनी मान्यताएँ भी हैं। हर त्यौहार के पीछे एक कथा है। चाहे अमीर हो या गरीब हर कोई सच्चे मन से त्यौहारों का स्वागत करते हैं। मानव जाति की तो मान्यता ही है कि एक त्यौहार हजारों दुश्मनों के सीने से होकर आता है। व्यापारी वर्ग में तो दीपावली का अपना ही महत्व है।
दीपावली हिन्दुओं का एक ऐसा पर्व है जो अपने साथ और भी कई पर्वो को लाता है। जैसे नरकाचोदस, धनतेरस, दीपावली, गोवर्धन पूजा, भैया दूज, पडवा आदि
दीपावली अर्थात् दीपों की वाली जिसका अर्थ है अपने चारों ओर फैले अंधियारे को दीए की रोशनी से दूर कर देना।
दीपावली के पहले दिन नरकाचोदस के रूप में घर, दुकान, ऑफिस आदि की तगड़ी सफाई होती है। रगड़ कर साफ किया जाता है, धोया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन घर से दरीदी भी साफ हो जाती है।
दूसरे दिन धनतेरस पर्व आता है। इस दिन हर कोई चाहे वह अमीर हो या फिर गरीब परंपरानुसार नए बर्तन खरीदता है, फर्क बस इतना है कि अमीर सोने चाँदी के खरीदेगा तो गरीब तांबे, लोहे का। इसके पीछे ऐसी मान्यता है कि उस खरीदी हुई वस्तु के साथ ही घर में लक्ष्मी जी का प्रवेश भी होता है।
तीसरे दिन छोटी दीपावली का त्यौहार बनाया जाता है। फिर बड़ी दीपावली, अगले दिन गोवर्धन पूजा, अंत में भैय्याज।
दीपावली के पीछे कई पौराणिक कथाएँ हैं, अधिक मान्यतानुसार पहली पौराणिक कथा है कि इस दिन विष्णु भगवान ने नृसिंह रूप धारण कर हिरण्यकश्यप को मारकर भक्त प्रहाद की रक्षा की थी। और कुछ लोगों कि मान्यता थी कि इस दिन भगवान पुरुषोत्तम राम ने लंका के राजा रावण को मारकर अपने अयोद्धया वापस लौटे थे।
कथा या मान्यता कुछ भी हो सच तो यह है कि यह त्यौहार बड़ी ही खुशी एवं उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने घरों में दीए जलाकर प्रकाश करते हैं। आजकल कुछ लोग मोमबत्तियाँ, झिमझिम लाइटों का भी प्रयोग करने लगे हैं। इस त्यौहार की हर किसी को प्रतीक्षा होती है। खासकर बच्चों व व्यापारियों को। पर्व के शुरूआत में तो लोग अपने निवास, आवास की सफाई में जुट जाते हैं। पताई एवं रंग-रोपन भी कराते हैं। बाजारों में तो हफ्तों पहले से ही चहल पहल शुरु हो जाती है। मिठाई की सुगंध से घर घर आनंदित होने लगता है। बच्चे आतिशबाजी करने को बेताब होते हैं।
दीपावली रात्रि को व्यापारी वर्ग अपने व्यापार में उन्नति हेतु कई धार्मिक अनुष्ठान कराते हैं। घर घर लक्ष्मी गणेश का पूजन मिठाई और खील बताशों द्वारा किया जाता है। कई बाजार तो रात भर खुले रहते हैं इसके पीछे मान्यता है कि रात्रि को गणेश-लक्ष्मी ठहलने को निकलते हैं। जहाँ जाते हैं वहीं के हो जाते हैं।
दीपावली के दूसरे दिन पण्डवा मनाया जाता है व्यापारी लोग इस दिन मुहर्त देखकर अपने दुकान की बोनी (पहली बिक्री) करते हैं। फिर फौरन दुकान बंद करके परिवार सहित घूमने, फिरने, मौज मस्ती करने निकलते हैं।
इस पंच-दिवसीय त्यौहार की महीमा ही निराली है। जिसे न सिर्फ हिन्दू बल्कि हर धर्म के लोग धूमधाम से मनाते हैं। सभी आपस में मिलकर मिठाई खाते हैं।
कुछ समाज ने निम्नवर्गीय, मंदबुद्धि वाले लोग इस दिन शराब पीकर जुआ खेलते हैं हारने पर खुद का माहौल तो दूषित करते हैं साथ ही दूसरों के लिए भी परेशानी बनते हैं।
आजकल बाजार में उपलब्ध प्रदूषण युक्त पटाखों द्वारा आतिशबाजी करने के कारण हमारा वातावरण भी दूषित हो रहा है। हमें इसके निवारण हेतु पारंपरिक पटाखों का ही प्रयोग करना चाहिए ताकि हमारी परंपरा भी कायम रहे और पर्यावरण भी दूषित न हो।