गंगा पतित पावनी कहलाती है। पुण्य सलिला गंगा, गीता और गौ-इन तीनों को हमारी संस्कृति का आधार तत्व माना गया है। इसमें गंगा का स्थान प्रमुख है। इसकी उत्पत्ति के सम्बन्ध में अनेक पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। कहा जाता है कि गंगा विष्णु के चरण-नख से निःसृत होकर ब्रह्या के कमण्डलु और तत्पश्चात शिव की जटाओं में विश्राम पाती हुई भगीरथ के अथक प्रयास के फलस्वरूप पृथ्वी पर अवतरित हो पाई है। पृथ्वी पर आते ही इसने राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को शाप से मुक्त कर दिया। तब से अब तक न जाने कितने पतितों का उद्धार इसने किया। इसकी पावन पुलिन पर याज्ञवल्क्य, भारद्वाज, अंगिरा, विश्वामित्र आदि ऋषि-मुनियों के आश्रम थे, जहां से ज्ञान की किरणें प्रस्फुटित होती थीं गंगा पुत्र भीष्म के पराक्रम को कौन नहीं जानता? इसकी पविता तो सर्वविदित है ही। ऐसी मान्यता है कि मरते समय व्यक्ति के मुख में अगर गंगा जल पड़ जाए तो व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। इतना ही नहीं, गंगा को हमारी संस्कृति में मां का स्थान दिया गया है। जैसे जन्मदात्री मां पुत्रों का दुख हरकर सुख देती है, वैसे ही गंगा भक्तों के लिए दुखहरणी और समस्त आनन्द-मंगलों की जननी है। गोस्वामी जी गंगा महात्म्य के बारे में लिखते हैंः- ग्ंगा का अतीत जितना गौरवशाली रहा है, वर्तमान भी उतना ही प्रभावशाली है। हिमालय भारत का रजत-मुकुट है और गंगा इसके वक्षस्थल का हीरक-हार। हिमालय से निःसृत होने के कारण इसके जल में जड़ी-बूटियां मिली होती हैं। इसलिए गंगाजल का स्नान और पान दोनों ही स्वास्थ्य के लिए हितकर हैं। इसके तट पर बड़े-बडे़ महानगरों का आर्विभाव हुआ है, यथा ऋषिकेश, हरिद्वार, कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी, पटना, कोलकाता इत्यादि। ये नगर धार्मिक एवं व्यावसायिक-दोनों दृष्टिकोणों से महत्वपूर्ण हैं। गंगोत्री से निकलकर बंगाल की खाड़ी से मिलने तक गंगा लंबी दूरी तय करती है। इस बीच गंगाजल से सिंचित भूमि (गंगा का मैदान) सोना उगलने लगाती है। इसके तटों पर हरे-भरे जंगल हैं, जो पर्यावरण को शुद्ध कर रहे हैं। इस प्रकार गंगा आध्यात्मिक एवं भौमिक दोनों दृष्टिकोणों से भारत के लिए वरदान है। गीमा में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं-’स्त्रोतसामस्ति जाहृवी’ (10/31) अर्थात मैं नदियों में गंगा हूं।
आज इनती पवित्र और उपयोगी गंगा हमारे कुकृत्यों से दूषित हो चली है। बडे़-बडे़ नगरों का प्रदूषित जल एवं कल-कारखानों से निकले विषैले स्त्राव को सीधे गंगा में प्रवाहित किया जा रहा। यह एक गंभीर चिंता का विषय है। इसकी शु़िद्ध के लिए केन्द्र सरकार ने ’गंगा सफाई योजना’ शुरू की है। परन्तु अभी तक इसके सार्थक परिणाम नहीं प्राप्त हो सके हैं। हमें तो गंगा की वह पूर्ण स्थिति प्राप्त करनी है, जब कहा जाता था-’गंगा तेरा पानी अमृत’। अतः हम भारतीयों का यह पुनीत कर्Ÿाव्य है कि गंगा को प्रदुषित होने से बचाएं।
सच पूछा जाए तो भातर की मर्यादा गंगा में निहित है औार गंगा की मर्यादा भारत में। गंगा की कहानी भारतीय संस्कृति का इतिहास है। वैदिक युग से इस वैज्ञानिक युग तक सामाजिक तथा राजनीतिक उत्थान- पतन की सारी गाथाएं गंगा की लहरों तथा तटवर्ती शिलाओं पर अंकित है।